आज का प्रेरक प्रसंग
➡ अत्याचार का विरोध ’
एक बार स्वामी विवेकानंद रेल में यात्रा कर रहे थे। वह जिस कोच में बैठे थे, उसी कोच में एक महिला भी अपने बच्चे के साथ यात्रा कर रही थी। एक स्टेशन पर दो अंग्रेज अफसर उस कोच में चढ़े और महिला के सामने वाली सीट पर आकर बैठ गए। कुछ देर बाद दोनों अंग्रेज अफसर उस महिला पर अभद्र टिप्पणियां करने लगे। वह महिला अंग्रेजी नहीं समझती थी तो चुप रही। उन दिनों भारत अंग्रेजों का गुलाम था। अंग्रेजों का भारतीयों के प्रति दुर्व्यवहार आम बात थी।
धीरे-धीरे दोनों अंग्रेज महिला को परेशान करने पर उतर आए। कभी उसके बच्चे का कान उमेठ देते, तो कभी उसके गाल पर चुटकी काट लेते। परेशान होकर उस महिला ने अगला स्टेशन आने पर एक दूसरे कोच में बैठे पुलिस के भारतीय सिपाही से शिकायत की। शिकायत पर वह सिपाही उस कोच में आया भी लेकिन अंग्रेजों को देखकर वह बिना कुछ कहे ही वापस चला गया। रेल के फिर से चलने पर दोनों अंग्रेज अफसरों ने अपनी हरकतें फिर से शुरू कर दीं। विवेकानंद काफी देर से यह सब देख-सुन रहे थे। वह समझ गए थे कि ये अंग्रेज इस तरह नहीं मानेंगे। वह अपने स्थान से उठे और जाकर उन अंग्रेजों के सामने खड़े हो गए।
उनकी सुगठित काया देखकर अंग्रेज सहम गए। पहले तो विवेकानंद ने उन दोनों की आंखों में घूरकर देखा। फिर अपने दायें हाथ के कुरते की आस्तीन ऊपर चढ़ा ली और हाथ मोड़कर उन्हें अपने बाजुओं की सुडौल और कसी हुए मांसपेशियां दिखाईं। विवेकानंद के रवैये से दोनों अंग्रेज अफसर डर गए और अगले स्टेशन पर वह दूसरे कोच में जाकर बैठ गए।
कर्तव्य की कहानी से सीख Moral Of Kartvya Ki Kahani : विवेकानंद ने अपने एक प्रवचन में यही घटना सुनाते हुए कहा कि जुल्म को जितना सहेंगे, वह उतना ही मजबूत होगा। अत्याचार के खिलाफ तुरंत आवाज उठानी चाहिए ।