दैनिक समसामयिकी – 22 November 2018 (Thursday)
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1.मंत्रियों के भ्रष्टाचार का ब्योरा देने से पीएमओ का इनकार
• प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने केंद्रीय मंत्रियों के खिलाफ प्राप्त कथित भ्रष्टाचार की शिकायतों के ब्योरे साझा करने से इनकार कर दिया है। पीएमओ ने कहा कि इस तरह की सूचना मुहैया कराना जटिल कवायद हो सकती है।
• पीएमओ का यह कथन ऐसे समय में आया है जब देश की प्रमुख जांच एजेंसी-केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने केंद्रीय कोयला एवं खनन राज्य मंत्री हरिभाई पार्थीभाई चौधरी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं।
• आरटीआई के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा गया कि पीएमओ को विभिन्न केंद्रीय मंत्रियों एवं उच्च स्तरीय पदाधिकारियों के खिलाफ समय-समय पर भ्रष्टाचार की शिकायतें प्राप्त होती रहती हैं। पीएमओ ने व्हिसल ब्लोअर नौकरशाह संजीव चतुव्रेदी द्वारा दाखिल आरटीआई आवेदन के जवाब में कहा, इनमें छद्मनाम या बेनाम से मिली शिकायतें भी शामिल हैं।
• प्राप्त शिकायतों में लगाए गए आरोपों/ इल्जामों की सत्यता को देखते हुए और इल्जामों के संबंध में दिए गए दस्तावेजों की उचित जांच की जाती है।
• भारतीय वन सेवा के अधिकारी चतुव्रेदी ने यहां अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में मुख्य सतर्कता अधिकारी रहते हुए भ्रष्टाचार के कई मामलों को उजागर किया था। आरटीआई आवेदन के जवाब में पीएमओ ने कहा कि जरूरी कार्रवाई करने के बाद रेकॉर्डों को एक जगह नहीं रखा जाता और वे इस कार्यालय की विभिन्न इकाइयों एवं क्षेत्रों में फैले हुए हैं।
• पीएमओ ने कहा, ‘‘ये प्राप्त शिकायतें भ्रष्टाचार और गैर-भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों समेत कई तरह के मामलों से जुड़ी होती हैं। आवेदक ने अपने आवेदन में केवल भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतों के विवरण मांगे हैं।
• ’कार्यालय ने कहा, ‘‘इन सभी शिकायतों को भ्रष्टाचार संबंधी शिकायतों के तौर पर पहचानना, जांचना और श्रेणी में रखना विषयपरक एवं जटिल काम हो सकता है।’ मांगी गई सूचनाओं के मिलान के लिए कई फाइलों की विस्तृत जांच करनी होगी।
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2.जलमार्गों के संघर्ष में एिशया-पेसिफिक बना इंडो-पेसिफिक
• हाल ही में एशिया-पेसिफिक क्षेत्र का नाम इंडो-पेसिफिक करने के बाद से दुनिया का फोकस महासागरों और इससे जुड़े मसलों पर बढ़ता जा रहा है। मुख्यत: हिंद महासागर खासतौर पर फारस की खाड़ी से मलक्का जलडमरूमध्य तक की सी लैन्स ऑफ कम्युनिकेशन्स (एसएलओसी) पर प्रभाव हासिल करने के पावर प्ले के कारण मालदीव और श्रीलंका की घटनाएं क्षेत्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहीं।
• एसएलओसी का अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा में और हमारे लिए इतना महत्व क्यों है?
भारतीय उपमहाद्वीप के पास हिंद महासागर के क्षेत्र से दुनिया का सबसे सघन जल यातायात होता है। चीन को खाड़ी से होने वाली ऊर्जा की 80 फीसदी आपूर्ति इसी मार्ग से होती है, जिसने इसे मैन्युफैक्चरिंग का सरताज बना रखा है। लगभग इसी प्रतिशत में यहां से चीनी प्रोडक्ट कंटेनरों में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भेजे जाते हैं।
• इस तरह चीन की पूरी आर्थिक तरक्की इस मार्ग पर आवाजाही पर निर्भर है। फारस की खाड़ी से मलक्का तक केवल एक अमेरिकी ठिकाना है, जो अमेरिका व सहयोगी देशों को एसएलओसी पर कुछ प्रभुत्व देता है। भारत के नोसैन्य संसाधान अमेरिका को कुछ आश्वस्त जरूर करते हैं। चीन को लंबे समय से इसका डर रहा है।
• ट्रेड वॉर एक बात है पर इसकी आर्थिक शक्ति को टिकाने वाले जहाजों को खतरा अमेरिका के साथ रणनीतिक होड़ बढ़ने के साथ वास्तविक होता जाएगा। इसीलिए उसने एसएलओसी के पास के देशों में प्रभाव पाने के लिए ‘बेल्ट एंड रोड’ योजना बनाई।
• पश्चिमी हिंद महासागर में डिजिबाउती में पहले ही चीनी ठिकाना है लेकिन, मलक्का जलडमरूमध्य के समीप स्थित अंडमान-निकोबार के पास इसकी मौजूदगी चीन को चिंतित करती है। वहां भारत का नवोदित संयुक्त कमान थिएटर भी है, जिसके मजबूत होने के साथ चीनी जहाजों को खतरा बढ़ जाएगा।
• हम युद्ध की बात नहीं कर रहे हैं पर आपातकालीन परिस्थितियों में क्षमताओं की बात कर रहे हैं। मलक्का के उस तरफ जाते ही आपके सामने पेसिफीक (प्रशांत) क्षेत्र आ जाता है। यहां जलमार्गों पर आसियान देशों का प्रभाव है।
• चीन ने बाहुबल से दक्षिण चीन सागर पर दबदबा जमा लिया है ताकि बाहरी नेविगेशन को कुछ नियंत्रित किया जा सके। इसमें इसने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को भी ठुकरा दिया। नियम आधारित परस्पर अस्तित्व व महासागरीय अावाजाही की स्वतंत्रता के खिलाफ इसने अहंकारी रवैया अपनाया है।
• इन्हीं कारणों से अमेरिका ने हिंद और प्रशांत महासागरों से जुड़े क्षेत्रों पर रणनीतिक सहयोग के माध्यम से ध्यान देने की जरूरत महसूस की। भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति इसमें मददगार है और भारत को अमेरिका के लिए रणनीतिक असेट बनाती है।
• चीन की नोसैन्य शक्ति बढ़ने के साथ अमेरिका और इसके सहयोगियों के साथ उसके दुर्घटनावश होने वाले टकराव की आशंका बढ़ जाएगी। भारत अमेरिका का गठबंधन सहयोगी नहीं है पर दोनों राष्ट्रों के बीच रणनीतिक भागीदारी को चीन उदारता से नहीं लेगा।
3. रक्षा सहयोग व तेल अन्वेषण बढ़ाएंगे भारत, वियतनाम
• भारत और वियतनाम ने अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए रक्षा सहयोग और तेल अन्वेषण बढ़ाने का फैसला किया है। उन्होंने दक्षिण चीन सागर में नौवहन तथा ऊपर से उड़ान एवं निर्बाध आर्थिक गतिविधियों के महत्व को भी दोहराया।
• यह कवायद ऐसे समय पर हुई है जबकि ¨हिन्द -प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन अपना प्रभुत्व दिखाता रहा है।
• विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद की वियतनाम की राजकीय यात्रा के दौरान दोनों देशों ने इस राय को साझा किया कि रक्षा और सुरक्षा सहयोग समग्र रणनीतिक साझेदारी का महत्वपूर्ण स्तंभ बन गया है।
• उन्होंने एक-दूसरे के नौसैनिक/तटरक्षक जहाजों की परस्पर यात्राएं, खासकर 2018 में और आने वाले सालों में जारी रखने का स्वागत किया। कोबिंद और वियतनाम के राष्ट्रपति गुयेन फू त्रोंग ने 2015-2020 के लिए वियतनाम-भारत रक्षा सहयोग पर संयुक्त दृष्टि वक्तव्य को प्रभावी तरीके से लागू करने पर सहमति जताई।
• संयुक्त वक्तव्य के अनुसार उन्होंने मानव संसाधन प्रशिक्षण में सहयोग बढ़ाने और दोनों देशों की सेना, वायुसेना, नौसेना तथा तटरक्षक के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करने पर सहमति जताई। उन्होंने साइबर सुरक्षा और सूचना साझेदारी में भी सहयोग बढाने पर रजामंदी जताई।
4. रूस और चीन को ताकत दिखाने के लिए अमेरिका की एलिफेंट वॉक
• अमेरिका ने पहली बार अपने एफ-35 लड़ाकू विमानों से युद्धाभ्यास किया है। युद्धाभ्यास को एलिफेंट वॉक नाम दिया गया है। ये उटा में हिल एयर फोर्स बेस पर किया गया। इसमें 35 विमानों ने एक साथ हिस्सा लिया।
• अमेरिका की इस ड्रिल का मकसद दुनिया को अपनी हवाई ताकत दिखाना है। खासकर चीन और रूस को, जिनसे उसे तगड़ी चुनौती मिल रही है। अमेरिका में पांचवीं पीढ़ी के ये स्टील्थ विमान दुनिया में सबसे महंगे और विध्वंसक हैं। इन विमानों को 388वीं फाइटर विंग और 419वीं रिजर्व यूनिट इस्तेमाल करती है।
• ड्रिल के कमांडिंग ऑफिसर मेजर कैलेब गुटमैन ने बताया कि हम इन विमानों से हवा और जमीन पर दुश्मन को धूल चटा देंगे। ये विमान सबसे विध्वंसक और हल्के हैं। अक्टूबर में ही रक्षा मंत्री जिम मैटिस ने निर्देश दिया है कि अमेरिका वायुसेना के बेड़े के 80% विमानों को 2019 तक युद्धाभ्यास पूरा करना है। यानी वे युद्ध में मोर्चे थामने के लिए तैयार हो जाएंगे।
• इससे पहले हुई ड्रिल में एयरफोर्स ने एयरक्राफ्ट के साथ हेलीकॉप्टर का उपयोग भी किया था। हिल एयरफोर्स बेस पर अभी 47 एफ-35 विमान हैं। अगले साल इस श्रेणी के 31 और विमान शामिल हो जाएंगे।
5. दक्षिण कोरिया के यांग बने इंटरपोल के नए अध्यक्ष
• दक्षिण कोरिया के किम जोंग-यांग अंतरराष्ट्रीय पुलिस संस्था इंटरपोल के अध्यक्ष बन गए हैं। दुबई में इंटरपोल के सदस्य देशों की बैठक में उन्हें चुना गया।
• इंटरपोल के अध्यक्ष का पद चीनी नागरिक मेंग हॉन्गवी को भ्रष्टाचार के आरोपों में हिरासत में लिए जाने के बाद सितंबर से ही रिक्त था।
➡ ECONOMY
6. नई कमेटी पर सरकार और RBI में होगी रस्साकशी!
• आरबीआई के कैपिटल रिजर्व की समीक्षा के लिए बनाई जाने वाली समिति के सदस्यों और इसके अध्यक्ष को लेकर केंद्रीय बैंक और सरकार के बीच रस्साकशी हो सकती है। आरबीआई के इकनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क पर बनाई जाने वाली इस समिति में पहली बार सरकार अपने नॉमिनी रखेगी।
• इस विषय पर इससे पहले की तीन समितियों की अध्यक्षता वाई एच मालेगाम, उषा थोराट और वी सुब्रमण्यम ने की थी। ये सभी आरबीआई से जुड़े हुए विशेषज्ञ थे। इनमें से एक कमेटी के सदस्य रहे आरबीआई के एक फॉर्मर एग्जिक्यूटिव ने कहा कि इस बार समिति की कमान किसी ‘स्वतंत्र’ उम्मीदवार को देने की संभावना ज्यादा है।
• एक सूत्र ने बताया कि सरकार बिमल जालान सरीखे किसी शख्स को वरीयता दे सकती है, जिन्हें फिस्कल और मॉनेटरी, दोनों अथॉरिटीज के साथ काम करने का सीधा अनुभव हो। आरबीआई के फॉर्मर गवर्नर जालान फाइनेंस सेक्रेटरी और सांसद भी रहे हैं।
• आरबीआई ने 19 नवंबर की बोर्ड मीटिंग के बाद कहा था कि इस समिति के सदस्यों और इसके काम करने की शर्तों पर वह और सरकार मिलकर निर्णय करेंगे। यह कमेटी एक सप्ताह में बनाई जा सकती है।
• आरबीआई की बैलेंस शीट तैयार करने से जुड़ी छह सदस्यों वाली मालेगाम समिति 2013 में बनाई गई थी और उसमें दो बाहरी सदस्य थे। 2004 की थोराट और 1997 की सुब्रमण्यम समितियों में कोई बाहरी सदस्य नहीं था। सरकार और आरबीआई के बीच इस बात पर गहरा मतभेद है कि केंद्रीय बैंक के पास कितना रिजर्व रहना चाहिए।
• आरबीआई का कहना है कि उसे पर्याप्त पूंजी और रिजर्व की जरूरत होती है ताकि किसी भी संकट की स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके। वहीं सरकार का मानना है कि आरबीआई जरूरत से ज्यादा रिजर्व बनाए रखता है और इसका उपयोग देश के दूसरे कार्यों में किया जा सकता है।
• 19 नवंबर वाली आरबीआई बोर्ड मीटिंग में इसी मसले की समीक्षा के लिए एक समिति बनाने का फैसला किया गया था।
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