IMP Article – Terrorism and India
प्रश्न:- भारत आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में से एक है I इसको देखते हुए भारत में आतंकवाद रोधी केंद्र की स्थापना जरुरी क्यूँ है?
– पेरिस में आतंकवाद की घटना दुनिया के लिए और खासतौर पर भारत के लिए बड़ा सबक है। आतंक की घटना से निपटने के लिए विभिन्न देशों को अपने राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर ऐसे संगठनों के विरुद्ध ठोस और प्रभावी कार्रवाई करनी होगी।
– आतंकवाद की जब भी बात होती है तो सभी देश इसके विरुद्ध आवाज तो जरूर उठाते हैं परंतु राजनीतिक कारणों से आतंकवाद फैलाने वाले देशों को सहयोग देते रहते हैं। सबसे बड़ा उदाहरण तो अमेरिका का ही है। यह जानते हुए भी कि पाकिस्तान दुनिया के आतंकवाद का केंद्र है, वह इसे बराबर आर्थिक सहायता देता रहता है। अन्य देशों का भी कमोबेश यही हाल है।
– हाल में हुए जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन में वैश्विक नेताओं ने आतंकवाद से निपटने के लिए वैश्विक रणनीति बनाने की बात की। कई दशकों से संयुक्त राष्ट्रमें आतंकवाद पर चर्चा होती रही है परंतु इसकी परिभाषा को लेकर एक राय नहीं बन पायी। आवश्यकता है कि आतंकवाद को लेकर संयुक्त राष्ट्र संधि पत्र अब विलंब किए बिनाबना दिया जाना चाहिए।
– मुंबई हमले की पृष्ठभूमि में भारत के लिए पेरिस की घटनाएं विशेष तौर पर महत्वपूर्ण हो जाती हैं। दोनों घटनाओं में बहुत समानता भी है। पेरिस और मुंबई दोनों महानगर हैं, दोनों शहरों में 8 से 10 आतंकियों ने मुख्य स्थानों पर हमला कर खून-खराबा किया। दोनों ही घटनाओं में अधिक से अधिक लोगों को मारने का दुष्टतापूर्ण इरादा था।
– फर्क यह था कि मुंबई में आतंकी समुद्र के रास्ते आए थे और उन्हें पाकिस्तान का पूरा समर्थन था। पेरिस मेंआतंकी पड़ोसी देश से आए थे या फ्रांस के ही थे और उन्हें किसी राज्य का नहीं बल्कि इस्लामिक स्टेट का समर्थन था, जो प्रचलित अर्थों में कोई राज्य नहीं वरन् आतंकी संगठन है।
–– इस्लामिक स्टेट की पुरानी योजना में भारत पर आक्रमण करना भी शामिल है, हालांकि निकट भविष्य में उसके निशाने पर यूरोपीय देश रहेंगे। उसने अमेरिका पर भी हमले की धमकी दी है। भारत में आईएस की चुनौती को लेकर सरकार में जो गंभीरता होनी चाहिए उसका अभाव दिखता है।
=>”भारत के सामने चुनोतियाँ”
– अमेरिका ने आतंकवाद पर 2014 की अपनी रिपोर्ट में लिखा है, भारत में मुस्लिमों की आबादी इतनी ज्यादा है कि इस्लामिक स्टेट को कुछ फीसदी समर्थन भी मिला तो उसे भारी संख्या में अनुयायी मिल जाएंगे। सच तो यह है कि वर्तमान में भी भारी संख्या में युवा मुस्लिम आईएस के राजनीतिक दर्शन की ओर आकर्षित हो चुके हैं। विश्लेषकों के मुताबिक ऐसे समर्थक भारत के केवल बड़े शहरों में बल्कि छोटे शहरों में भी हैं और विदेशी जेहादी संगठनों को भारत में भर्ती के लिए बड़ी उपजाऊ जमीन नज़र आती है।
– भारत सरकार को इस्लामिक स्टेट या और अन्य कट्टरपंथी संगठनों की चुनौती का सामना करने के लिए बौद्धिक और सामरिक दोनों ही स्तरों पर तैयारी करनी पड़ेगी। बौद्धिक स्तर पर तो कुछ प्रगति हुई है।
– देश के करीब एक हजार मुफ्ती और इमामों के समूह ने इस्लामिक स्टेट के विरुद्ध फतवा जारी किया था कि इस संगठन द्वारा निर्दोष व्यक्तियों की हत्या इस्लाम के सिद्धांतों के विपरीत है। देश में उदारवादी सोच के मुस्लिम ज्यादा संख्या में हैं परंतु दुर्भाग्य से किन्हीं कारणों से ये अपनी बात खुलकर नहीं रखते। इनकी खामोशी का लाभ कट्टरपंथी लेते हैं और अपनी बात डंके की चोट पर करते हैं।
– शिक्षा प्रणाली में सुधार की विशेष जरूरत है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि मदरसों में आधुनिक शिक्षा अवश्य दी जाए, ताकि आधुनिक शिक्षा से कोमल दिमागों को कट्टरपंथ के सांचे में ढलने से रोकाजा सके।
=> सुरक्षा बलों की तैयारी :-
– सामरिक दृष्टि से हमें यह देखना होगा कि हमारी पुलिस और अर्द्धसैनिक बल आतंकी हमलों का सामना करने के लिए कितने सक्षम हैं। मुंबई में 26 नंवबर 2008 के आतंकी हमले के बाद पुलिस को प्रभावी बनाने के लिए कई कदम उठाए गए थे। केंद्र ने राज्य सरकारों को बल की जनशक्ति बढ़ाने को लिखा था।
– नेशनल सिक्योरिटी गार्ड की इकाइयां दिल्ली के अलावा अन्य बड़े शहरों में भी स्थापित की गईं। नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) का गठन किया गया। तटीय सुरक्षा के लिए योजना बनाई गई इत्यादि।
– आवश्यकता है कि उसी तर्ज पर एक और योजना तैयार कर कार्यांन्वित की जाए। दुर्भाग्य से मौजूदा सरकार ने आंतरिक सुरक्षा मजबूत करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को भी पूरा नहीं किया गया है। अर्द्धसैनिक बलों की जनशक्ति में बढ़ोतरी जरूर हुई है, परंतु इनकी मारक शक्ति लगभग पहले जैसी है।– सीमाओं की सुरक्षा पर हमें पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।पश्चिमी सीमा पर सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत करनी होगी। तटीय सुरक्षा में अभी भी बहुत खामियां हैं, जिन्हें दूर करना होगा। आतंकवाद के क्षेत्र में कोई भी ढिलाई देश को बहुत महंगी पड़ सकती है।
=> भारत आतंकवाद से सबसे ज्यादा पीड़ित छठा देश :-
– दुनिया में पांच देश आतंकवाद से भयंकर रूप से प्रभावित हैं- इराक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नाइजीरिया और सीरिया। अन्य सामान्य देशों में भारत आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित है। ऐसा होते हुए भी हमने आज तक आतंकवाद से लड़ने की अपनी नीति परिभाषित नहीं की है। आतंकवाद से लड़ने का हमारा कानून भी इतना सख्त नहीं है, जितना अमेरिका या इंग्लैंड का है।
=>निष्कर्ष :-
– भारतीय प्रधानमंत्री ने आतंकवाद से लड़ने का जो दस सूत्रीय कार्यक्रम तुर्की में रखा वह वैश्विक स्तर के लिए तो एकदम सही है परंतु उचित होगा यदि वे इस नीति को राष्ट्रीय स्तर स्वरूप भी दें। उन्होंने दुनिया से आह्वान किया कि सब लोग एक आवाज में आतंकवाद का विरोध करें। आवश्यकता है कि देश में भी आतंकवाद को लेकर आम सहमति कायम की जाए।
– इस विषय पर क्षुद्र राजनीतिक लाभ-हानि के दृष्टिकोण से की जाने वाली बयानबाजी से बचा जाए। देश में एनसीटीसी (नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर) बनाने की बात थी, लेकिन राज्यों ने इसका विरोध किया था। विरोध के कुछ के बिंदु उचित भी थे। योजना में आवश्यक संशोधन करके उसे लागू करना आतंकवाद से निपटने की दिशामें ठोस कदम होगा।