जम्मू और कश्मीर में जारी गतिरोध के बीच सरकार ने महबूबा मुफ़्ती और और अन्य नेताओं को एहतियात के तौर पर हाउस अरेस्ट कर दिया है. इसके पहले भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में पुणे की पुलिस ने पांच बुद्धिजीवियों और राइट एक्टिविस्ट्स को गिरफ्तार किया था. सुप्रीम कोर्ट ने इन लोगों को हाउस अरेस्ट रखने के आदेश जारी किये हैं. अब यह सवाल उठता है कि आखिर यह हाउस अरेस्ट या नज़रबंदी क्या होती है.
#अरेस्ट_वॉरंट_या_गिरफ़्तारी_के_आदेश
किसी अभियुक्त को गिरफ्तार करने के लिए कोर्ट अरेस्ट वॉरंट यानि गिरफ्तारी का आदेश जारी करता है. अरेस्ट वॉरंट के तहत संपत्ति की तलाशी ली जा सकती है और उसे जब्त भी किया जा सकता है. अपराध की प्रकृति के आधार पर अरेस्ट वॉरंट की प्रकृति भी निर्भर करती है. अरेस्ट वॉरंट जमानती और गैर-जमानती हो सकता है. संज्ञेय अपराध की स्थिति में पुलिस अभियुक्त को बिना अरेस्ट वॉरंट के गिरफ़्तार कर सकती है.
#सर्च_वॉरंट
सर्च वॉरंट वह कानूनी अधिकार है जिसके तहत पुलिस या फिर जांच एजेंसी को घर, मकान, बिल्डिंग या फिर व्यक्ति की तलाशी के आदेश दिए जाते हैं. पुलिस इसके लिए मजिस्ट्रेट या फिर जिला कोर्ट से इजाजत मांगती है.
#हाउस_अरेस्ट_या_नज़रबंदी
जब तक कोर्ट यह तय नहीं कर पाती है कि कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए दोषी है या नहीं तो उसे जेल नहीं भेजती है और उस आरोपी व्यक्ति को खुला घूमने से रोकने के लिए कोर्ट हाउस अरेस्ट या नज़रबंदी का आदेश देती है. इसका मतलब सिर्फ इतना होता है कि गिरफ्तार किया गया व्यक्ति अपने घर से बाहर न निकल पाए. #हालाँकि_भारतीय_कानून_में_हाउस_अरेस्ट_शब्द_का_ज़िक्र_नहीं_है. अर्थात हाउस अरेस्ट की स्थिति में व्यक्ति को थाने या फिर जेल नहीं ले जाया जाता है बल्कि उसके घर में ही बंद रखा जाता है.
हाउस अरेस्ट के दौरान गिरफ्तार व्यक्ति किस से बात करे, किससे नहीं, इस पर पांबदी लगाई जा सकती है. आरोपी व्यक्ति को सिर्फ घर के लोगों और अपने वकील से बातचीत की इजाजत दी जा सकती है.
#हाउस_अरेस्ट_की_दशा_में:
1. यह सोचना बिलकुल गलत है कि घर में नजरबन्द व्यक्ति हमेशा घर में जेल की तरह कैद रहता है बल्कि सच यह है कि यदि आरोप बहुत संगीन नहीं हैं तो आरोपी को उसके सामान्य काम जैसे स्कूल, डॉक्टर से मिलना, किसी से मिलना, सामुदायिक सेवा और अदालतों द्वारा तय किये गए अन्य काम करने की अनुमति होती है. हालाँकि इस दौरान सुरक्षा कर्मी आरोपी के साथ रहेंगे और उसे एक इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग डिवाइस पहनना होगा.
2. हाउस अरेस्ट कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के पहले की दशा है अर्थात इस दशा में व्यक्ति को बिना जेल भेजे जेल जैसी स्थितियों में रखने की कोशिश होती है.
3. #सामान्यतः आरोपी व्यक्ति को बाहर यात्रा करने की छूट नहीं होती है हालाँकि किन्ही विशेष दशाओं में अनुमति दी जा सकती है.
4. हाउस अरेस्ट की सजा क्रिमिनल लोगों को भी दी जा सकती है यदि जेल की सजा किन्ही विशेष कारणों से ठीक/सुरक्षित नहीं है.
5. आमतौर पर घर में नजरबन्द व्यक्ति को किसी भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के इस्तेमाल की अनुमति नहीं होती है लेकिन यदि इस्तेमाल करने की छूट मिलती है तो उसका इस्तेमाल सम्बंधित अधिकारियों की निगरानी में ही होता है.
6. आरोपी व्यक्ति पर नजर रखने के लिए उसे किसी विशेष #इलेक्ट्रॉनिक_डिवाइस को पहनने को कहा जाता है ताकि उस पर दिन रात नजर रखी जा सके.
7. हाउस अरेस्ट की दशा में आरोपी व्यक्ति को इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और मोनिटरिंग सर्विस का भुगतान खुद करना होगा.
8. हाउस अरेस्ट का बड़ा नुकसान यह है कि इसमें आरोपी व्यक्ति को उसके अच्छे आचरण के कारण सजा में छूट नहीं मिलती है जैसे कि जेल में रहते हुए कैदी को मिलती है.
#हाउस_अरेस्ट_की_दशा_में_आरोपी_व्यक्ति_के_क्या_अधिकार_होते_हैं:
चाहे आप वयस्क नागरिक हों या गैर-नागरिक हों, अगर आपको गिरफ्तार किया गया है तो आपके पास कुछ अधिकार हैं जिन्हें आपको बताना कानून प्रवर्तन अधिकारी की जिम्मेदारी है. ये अधिकार हैं ;
1. हाउस अरेस्ट की अवस्था में यदि किसी व्यक्ति से कोई इन्वेस्टीगेशन करनी होती है तो उसका वकील उसके साथ बैठ सकता है यदि कोई आरोपी वकील को हायर नहीं कर सकता है तो उसे वकील अदालत की तरफ से दिया जाता है.
2. हाउस अरेस्ट की दशा में आरोपी के पास यह अधिकार होता है कि वह अपना नाम, पता और पहचान चिन्ह के अलावा कुछ भी बताने से इंकार कर सकता है.
3. आरोपी इस पूछताछ के दौरान जो कुछ भी बोलता है उसका इस्तेमाल आरोपी के खिलाफ अदालत में सबूत के तौर पर किया जा सकता है.
ऊपर लिखे गए तीनों अधिकार आरोपी को संविधान ने दिए हैं. यदि कानून प्रवर्तन अधिकारी इन अधिकारों के बारे में आरोपी व्यक्ति को नहीं बताता है तो उसके द्वारा हाउस अरेस्ट के दौरान दिया गया स्टेटमेंट उसके खिलाफ अदालत में सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
ऊपर लिखे गए तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हाउस अरेस्ट, जेल की तुलना में थोड़ी राहत भरी सजा होती है. इसके साथ ही यह कम खर्चीली दंडात्मक कार्यवाही है जो कि अपराध पर नियंत्रण करने के लिए बनायीं गयी है.
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